Monday, March 31, 2025

सुखासन क्या है? सुखासन करने की विधि और लाभ व सावधानी

  सुखासन क्या है? सुखासन करने की विधि और लाभ व सावधानी

सुखासन क्या है?

सुखासन एक सरल और आरामदायक योगासन हैजिसका मुख्य उद्देश्य ध्यान और मानसिक शांति प्राप्त करना है। यह आसन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त है और विशेष रूप से ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास में सहायक माना जाता है। 'सुखासनसंस्कृत के 'सुख' (आनंद या आराम) और 'आसन' (मुद्रा) से मिलकर बना हैजिसका अर्थ है 'आरामदायक मुद्रा' 

 सुखासन



 सुखासन करने की विधि :-

  1. प्रारंभिक स्थिति:
    • किसी स्वच्छ और शांत स्थान पर योग मैट बिछाकर बैठें।
    • पैरों को सामने की ओर सीधा फैलाएं और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
  2. पैरों की स्थिति:
    • बाएं पैर को मोड़कर दाएं जांघ के नीचे रखें।फिर दाएं पैर को मोड़कर बाएं जांघ के नीचे रखें।
  3. हाथों की स्थिति:
    • दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
    • आप 'ज्ञान मुद्रामें भी हाथों को रख सकते हैंजिसमें अंगूठा और तर्जनी अंगुली आपस में जुड़ते हैं और बाकी अंगुलियाँ खुली रहती हैं।
  4. मुद्रा और एकाग्रता:
    • सिर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
    • आंखें बंद करें और सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
    • गहरीधीमी सांसें लें और शांति महसूस करें।
  5. समय अवधि:
    • शुरुआत में इस आसन को 5-10 मिनट तक करें।
    • अभ्यास बढ़ने पर इसे 20 मिनट या अधिक तक बढ़ाया जा सकता है। ​

सुखासन के लाभ :-

  • मानसिक शांति:  यह आसन मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होता है।
  • ध्यान में सहायक:  यह ध्यान और प्राणायाम के लिए आदर्श आसन हैजिससे मन की एकाग्रता बढ़ती है।
  • शारीरिक लचीलापन:  यह रीढ़ की हड्डीकूल्हों और घुटनों को लचीला बनाता है।
  • श्वसन में सुधार:  यह आसन सांस लेने की प्रक्रिया में सुधार करता है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है।
  • शरीर की मुद्रा में सुधार:  रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने में मदद करता हैजिससे बैठने की आदत सुधरती है।
  • क्रोध में कमी:  क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

सुखासन करते समय सावधानियां :-

  • शारीरिक समस्याएं: यदि आपके घुटनोंकूल्हों या पीठ में दर्द या चोट हैतो इस आसन को करने से पहले चिकित्सकीय सलाह लें।
  • सहारा का उपयोग: यदि इस आसन में बैठने में कठिनाई होतो नितंबों के नीचे कुशन या ब्लॉक का उपयोग करें।

निष्कर्ष :-

सुखासन एक सरल और प्रभावशाली योगासन हैजो मानसिक शांतिशारीरिक लचीलापन और ध्यान में एकाग्रता लाने में सहायक है। नियमित अभ्यास से आप मानसिक और शारीरिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 

सिद्धासन क्या है? सिद्धासन करने की विधि, सिद्धासन के लाभ, सावधानियां और निष्कर्ष

 सिद्धासन क्या है? सिद्धासन करने की विधि, सिद्धासन के लाभ, सावधानियां और निष्कर्ष


 सिद्धासन क्या है?

सिद्धासन एक महत्वपूर्ण प्राचीन योगासन है जिसे ध्यान और प्राणायाम के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह साधकों और योगियों के लिए अत्यधिक प्रभावशाली आसन है क्योंकि यह शरीर को स्थिरता प्रदान करता है और मन को एकाग्र करने में सहायक होता है। इसे सिद्ध मुद्रा भी कहा जाता है इस आसन को "अत्यंत सिद्ध" या "सफलता देने वाला आसन" भी कहा जाता है।

 

 सिद्धासन



सिद्धासन करने की विधि

1. प्रारंभिक स्थिति:

  • सबसे पहले किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर योग मैट बिछाकर बैठें।
  • दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठें और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।

2. पैरों की स्थिति:

  • बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को गुदा और जननांगों के बीच रखें।
  • अब दाएं पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को बाएं पैर की एड़ी के ऊपर या सामने रखें।
  • पैरों की स्थिति इस तरह होनी चाहिए कि तलवे और एड़ियां आपस में स्पर्श करें।

3. हाथों की स्थिति:

  • दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा या ध्यान मुद्रा में घुटनों पर रखें।
  • हथेलियों को ऊपर की ओर रखें और अंगूठे तथा तर्जनी को मिलाकर ज्ञान मुद्रा बनाएं।

4. मुद्रा और एकाग्रता:

  • सिर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
  • आंखें बंद कर लें और ध्यान केंद्रित करें।
  • गहरी सांस लें और छोड़ें।

5. समय अवधि:

  • शुरुआत में इस आसन को 5-10 मिनट तक करें।
  • अभ्यास बढ़ने पर इसे 30 मिनट तक बढ़ाया जा सकता है।

सिद्धासन के लाभ

 ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि: यह आसन मानसिक शांति प्रदान करता है और ध्यान में सहायता करता है।
 
मूलाधार चक्र को सक्रिय करता है: यह आसन मूलाधार चक्र (Root Chakra) को सक्रिय करने में सहायक होता है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा जाग्रत होती है।
 
नर्वस सिस्टम को शांत करता है: यह आसन तंत्रिका तंत्र को संतुलित करता है और तनाव को कम करता है।
 
रीढ़ की हड्डी को सीधा रखता है: यह आसन शरीर की मुद्रा सुधारने में मदद करता है।
 
प्राणायाम के लिए उपयुक्त: यह आसन प्राणायाम और मंत्र जाप के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।


सिद्धासन करते समय सावधानियां

घुटनों या जोड़ों में दर्द हो तो इस आसन से बचें।
अगर रीढ़ की हड्डी में कोई समस्या है, तो डॉक्टर की सलाह लेकर ही करें।
यह आसन भोजन के तुरंत बाद न करें, इसे खाली पेट करना अधिक लाभदायक होता है।
अगर पैरों में सुन्नता महसूस हो तो धीरे-धीरे स्थिति बदलें।

गृहस्थ लोगों को इस आसन का अभ्यास लंबे समय तक नहीं करना चाहिए
साइटिका, स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए

 


निष्कर्ष

सिद्धासन एक प्रभावशाली योगासन है जो ध्यान और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यह मानसिक शांति, शारीरिक स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। नियमित रूप से करने से मानसिक और शारीरिक लाभ मिलते हैं।

 

Saturday, March 22, 2025

शीतली प्राणायाम क्या है? ​शीतली प्राणायाम करने की विधि, ​शीतली प्राणायाम के लाभ, सावधानियां और निष्कर्ष

शीतली प्राणायाम क्या है? शीतली प्राणायाम करने की विधि, शीतली प्राणायाम के लाभ, सावधानियां और निष्कर्ष


शीतली प्राणायाम योग की एक महत्वपूर्ण श्वास तकनीक है, जिसका उद्देश्य शरीर और मन को शीतलता प्रदान करना है। संस्कृत में 'शीतली' का अर्थ है 'ठंडा' या 'शीतल', जो इस प्राणायाम के प्रभाव को दर्शाता है। यह प्राणायाम विशेष रूप से गर्मी के मौसम में लाभदायक होता है, क्योंकि यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।


शीतली प्राणायाम करने की विधि

  1. आरामदायक स्थिति अपनाएं:

    • सुखासन, पद्मासन या किसी भी आरामदायक ध्यानात्मक आसन में बैठें।

    • रीढ़ को सीधा रखें और हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें।

  2. जीभ की स्थिति:

    • जीभ को बाहर निकालें और उसके किनारों को मोड़कर एक नली (ट्यूब) का आकार बनाएं। यदि जीभ को इस प्रकार मोड़ना संभव न हो, तो शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास करें।

  3. श्वास प्रक्रिया:

    • जीभ की बनी नली के माध्यम से धीरे-धीरे और गहराई से श्वास अंदर पूरक

    •  लें, जिससे ठंडी हवा फेफड़ों तक पहुंचे।

    • श्वास भरने के बाद जीभ को अंदर लें और मुंह बंद करें।

    • कंठ को छाती से लगाकर जालंधर बंध लगाएं और यथासंभव श्वास को रोकें।

    • बंद को छोड़ें और नाक के माध्यम से धीरे-धीरे श्वास बाहर रेचक निकालें।

  4. अवधि:

    • शुरुआत में इस प्रक्रिया को 2-3 बार दोहराएं। अभ्यास बढ़ने पर इसे 5 से 10 बार रोग या आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।


शीतली प्राणायाम के लाभ

  • शरीर को ठंडक प्रदान करता है: यह प्राणायाम शरीर के तापमान को कम करता है और गर्मी के प्रभाव को संतुलित करता है।

  • मानसिक शांति: तनाव, चिंता और क्रोध को कम करके मन को शांत करता है।

  • पाचन में सुधार: पाचन तंत्र को सक्रिय करता है और अपच जैसी समस्याओं में राहत देता है।

  • रक्तचाप नियंत्रण: उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है। पित्त के रोगों में लाभप्रद है। रक्तशोधन भी करता है। 

  • रक्त शुद्धि: रक्त को शुद्ध करता है, जिससे त्वचा में निखार आता है।

  • नेत्र स्वास्थ्य: आंखों की जलन और लालिमा को कम करता है, जिससे दृष्टि में सुधार होता है।

  • आहार नियंत्रण : इसकी सिद्धि से भूख-प्यास पर विजय प्राप्त होती है, ऐसा योगग्रन्थों में कहा गया है।

  • जिह्वा, मुँह एवं गले के रोगों में लाभप्रद है। गुल्म, प्लीहा, ज्वर, अजीर्ण आदि ठीक होते हैं।


सावधानियां

  • सर्दी या खांसी: यदि आपको सर्दी, खांसी या टॉन्सिल की समस्या है, तो इस प्राणायाम से बचें।

  • निम्न रक्तचाप: जिनका रक्तचाप सामान्य से कम है, उन्हें यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

  • कब्ज के मरीज: पुरानी कब्ज से पीड़ित लोग इस प्राणायाम का अभ्यास न करें।

  • सर्द मौसम में: ठंडे मौसम में इस प्राणायाम का अभ्यास करने से बचें, क्योंकि यह शरीर में ठंडक बढ़ा सकता है।

  • कुम्भक के साथ जालन्धर बन्ध भी लगा सकते हैं। कफ प्रकृतिवालों एवं टॉन्सिल के रोगियों को शीतली और सीत्कारी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

  • शीतकाल में इसका अभ्यास कम करें।


निष्कर्ष

शीतली प्राणायाम एक प्रभावशाली योगिक तकनीक है, जो शरीर और मन को शीतलता और शांति प्रदान करती है। नियमित अभ्यास से पाचन, रक्तचाप और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। हालांकि, इसे करते समय उपरोक्त सावधानियों का पालन करना आवश्यक है ताकि किसी भी प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सके। यदि आप किसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त हैं, तो इस प्राणायाम को शुरू करने से पहले योग विशेषज्ञ या चिकित्सक से परामर्श करें।

Thursday, March 20, 2025

कर्णरोगान्तक प्राणायाम

कर्णरोगान्तक प्राणायाम


इस प्राणायाम में दोनों नासिकाओं से पूरक करके फिर मुँह एवं दोनों नासिकाएँ बन्द कर पूरक की हुई वायु को बाहर धक्का देते हैं, जैसे कि श्वास को कानों से बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। 

जब वायु का कानों की ओर दबाव होता है तो कानों से स्वतः ही एक ध्वनि सी होती है। यही इसकी विधि है। 

श्वास को 4-5 बार ऊपर की ओर धक्का देकर फिर दोनों नासिकाओं से रेचक करें। इस प्रकार 2-3 बार करना पर्याप्त होगा।


लाभ :-

कर्णरोगों में लाभदायक, विशेषतः बहरेपन को दूर करता है।

Wednesday, March 19, 2025

चन्द्रभेदी या चन्द्रांग प्राणायाम

चन्द्रभेदी या चन्द्रांग प्राणायाम


 इस प्राणायाम में बाई नासिका से पूरक करके, अन्तः कुम्भक करें। 

इसे जालन्धर एवं मूलबन्ध के साथ करना उत्तम है। 

तत्पश्चात् दाई नाक से रेचक करें। 

इसमें हमेशा चन्द्रस्वर से पूरक एवं सूर्यस्वर से रेचक करते हैं। 

सूर्यभेदी इससे ठीक विपरीत है। 

कुम्भक के समय पूर्ण चन्द्रमण्डल के प्रकाश के साथ ध्यान करें। 

शीतकाल में इसका अभ्यास कम करना चाहिए।


लाभ :- शरीर में शीतलता आने से थकावट एवं उष्णता दूर होती है। 

मन की उत्तेजनाओं को शान्त करता है। 

पित्त के कारण होने वाली जलन में लाभदायक है।

Tuesday, March 18, 2025

छोटी शुरुआत- बड़ा परिणाम

 छोटी शुरुआत- बड़ा परिणाम


1. अगर आप घर खरीदना चाहते हैं, तो आप ज़मीन खरीदकर शुरुआत करें

2. अगर आप साम्राज्य बनाना चाहते हैं, तो आप अपना व्यवसाय बढ़ाना शुरू करें

3. अगर आप फिट रहना चाहते हैं, तो आप स्वस्थ खाना खाना शुरू करें

4. अगर आप बुद्धिमान बनना चाहते हैं, तो आप किताबें पढ़ना शुरू करें

5. अगर आप दुनिया घूमना चाहते हैं, तो आप पैसे बचाना शुरू करें

6. अगर आप खुश रहना चाहते हैं, तो आप आभारी होना शुरू करें

7. अगर आप अमीर बनना चाहते हैं, तो आप अपने वित्त का प्रबंधन करना शुरू करें

8. अगर आप एक अच्छे नेता बनना चाहते हैं, तो आप पहले खुद का नेतृत्व करें

9. अगर आप एक अच्छे माता-पिता बनना चाहते हैं, तो आप एक अच्छे रोल मॉडल बनकर शुरुआत करें

10. अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो आप छोटे-छोटे कदम उठाकर शुरुआत करें

11. अगर आप आत्मविश्वासी बनना चाहते हैं, तो आप खुद पर विश्वास करके शुरुआत करें

12. अगर आप कोई नया कौशल सीखना चाहते हैं, तो आप रोज़ाना अभ्यास करके शुरुआत करें

13. अगर आप रचनात्मक बनना चाहते हैं, तो आप नई चीज़ें आज़माकर शुरुआत करें

14. अगर आप सम्मान पाना चाहते हैं, तो आप  आप दूसरों का सम्मान करके शुरुआत करें

15. यदि आप मजबूत संबंध बनाना चाहते हैं, तो आप भरोसेमंद बनकर शुरुआत करें

16. यदि आप अपने लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप उन्हें स्पष्ट रूप से निर्धारित करके शुरुआत करें

17. यदि आप व्यवस्थित होना चाहते हैं, तो आप अपने स्थान को अव्यवस्थित करना शुरू करें

18. यदि आप स्वतंत्र होना चाहते हैं, तो आप अपने डर को दूर करके शुरुआत करें

19. यदि आप बदलाव करना चाहते हैं, तो आप पहले खुद को बदलना शुरू करें

20. यदि आप मैराथन दौड़ना चाहते हैं, तो आप रोजाना पैदल चलना शुरू करें

21. यदि आप व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आप किसी ज़रूरत की पहचान करके शुरुआत करें

22. यदि आप दूसरों की मदद करना चाहते हैं, तो आप पहले खुद की मदद करके शुरुआत करें

23. यदि आप कोई भाषा सीखना चाहते हैं, तो आप हर दिन अभ्यास करके शुरुआत करें

24. यदि आप उत्पादक बनना चाहते हैं, तो आप अपने समय का बुद्धिमानी से प्रबंधन करके शुरुआत करें

25. यदि आप ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप प्रश्न पूछना शुरू करें

26. यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो आप नियमित रूप से व्यायाम करके शुरुआत करें

27. यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो आप नियमित रूप से व्यायाम करके शुरुआत करें  शांति, आप शिकायतों को दूर करके शुरू करते हैं

28. यदि आप मजबूत बनना चाहते हैं, तो आप विश्वास के साथ चुनौतियों का सामना करना शुरू करते हैं

29. यदि आप दयालु बनना चाहते हैं, तो आप पहले खुद के प्रति दयालु बनना शुरू करते हैं

30. यदि आप प्रभाव डालना चाहते हैं, तो आप प्रामाणिक बनना शुरू करते हैं

सफलता रातों-रात नहीं मिलती है, और कुछ भी महत्वपूर्ण हासिल करने के लिए लगातार प्रयास की आवश्यकता होती है। चाहे वह घर का मालिक होना हो, व्यवसाय शुरू करना हो, या सम्मान प्राप्त करना हो, यात्रा एक कदम से शुरू होती है। आगे के लक्ष्य की विशालता से निराश न हों। पहले कदम पर ध्यान केंद्रित करें, फिर अगला, और इससे पहले कि आप इसे जानें, आप अपने सपनों को साकार करने के रास्ते पर अच्छी तरह से आगे बढ़ेंगे। कुंजी यह है कि शुरुआत करें, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, और दृढ़ रहें। विश्वास बनाए रखें, और आप प्रगति देखेंगे।

Sunday, March 16, 2025

सूर्यभेदी या सूर्यांग प्राणायाम

 सूर्यभेदी या सूर्यांग प्राणायाम


ध्यानोपयोगी आसन में बैठकर दाईं नासिका से पूरक करके तत्पश्चात् जालन्धर बन्ध एवं मूलबन्ध के साथ कुम्भक करें और अन्त में बाई नासिका से रेचक करें। अन्तः कुम्भक का समय धीरे-धीरे बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्राणायाम की आवृत्ति 3.5 या 7 ऐसे बढ़ाकर कुछ दिनों के अभ्यास से 10 तक करें। कुम्भक के समय सूर्यमण्डल के तेज के साथ ध्यान करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में यह प्राणायाम अल्प मात्रा में करना चाहिए।


लाभ :-  शरीर में उष्णता तथा पित्त की वृद्धि होती है। वात और कफ से उत्पन्न होने वाले रोग, रक्त एवं त्वचा के दोष, उदर-कृमि, कोढ़, सूजाक, छूत के रोग, अजीर्ण, अपच, स्त्रीरोग आदि में लाभदायक है। कुण्डलिनी जागरण में सहायक है। बुढ़ापा दूर रहता है। अनुलोम-विलोम के बाद थोड़ी मात्रा में इस प्राणायाम को करना चाहिए। बिना कुम्भक के सूर्यभेदी प्राणायाम करने से हृदयगति और शरीर की कार्यशीलता बढ़ती है तथा वजन कम होता है। इसके लिए इसके 27 चक्र दिन में 2 बार करना जरूरी है।

Sunday, March 2, 2025

हे हृदयेश्वर

 हे हृदयेश्वर


                    हे हृदयेश्वर! हे सर्वेश्वर! हे प्राणेश्वर! हे परमेश्वर! 

                    हे समर्थ ! हे करुणा सिन्धु! बिनती ये स्वीकार करो 

                    भूल दिखाकर उसे मिटाकर अपना प्रेम प्रदान करो
 
                    हे हृदयेश्वर हे सर्वेश्वर हे प्राणेश्वर हे परमेश्वर ।।

                    पीर हरो हरि पीर हरो-2 पीर हरो प्रभु पीर हरो -2

Saturday, March 1, 2025

वर्तमानेन कालेन

 वर्तमानेन कालेन वर्तयंती विचक्षणा: 

                                                                    (चाणक्य नीति 13/2)

बुद्धिमान मनुष्य वर्तमान की स्थिति के अनुसार ही व्यवहार करते हैं 

उत्थित लोलासन क्या है? उत्थित लोलासन करने का सरल विधि, विशेष लाभ, सावधानी और निष्कर्ष

  उत्थित लोलासन क्या है ? उत्थित लोलासन करने का सरल विधि , विशेष लाभ , सावधानी और निष्कर्ष   उत्थित लोलासन (Utthita Lolasana) एक योगासन...