Wednesday, February 5, 2025

विजय रथ

 

विजय रथ


दुहु दिसि जय जयकार करि, निज निज जोरी जानि।

भिरे वीर छत रामहि, उत रावनहि बखानि।।

 

रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।

युद्ध के मैदान में रावण रथ पर सवार हैं और श्रीराम बिना रथ के जमीन पर खड़े हैं, यह देखकर विभीषण बहुत चिन्तित व अधीर हो जाते हैं।

अधिक प्रीति मन भा सन्देहा। बन्दी चरन कह सहित सनेहा।।

मन में श्रीराम के प्रति अत्यन्त प्रीति होने के कारण स्नेह पूर्वक चरण पकड़कर चिन्तित होकर कहते हैं-

नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।

हे नाथ न तो आपके पास रथ है ना ही शरीर की रक्षा के लिए कोई कवच है ऐसी हालत में आप इस वीर बलवान रावण को कैसे जीत पायेंगें?

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यन्दन आना।।

विभीषण की चिन्ता देखकर मुस्कुराते हुए श्री राम कहते हैं, कि हे मित्र! आप चिन्ता ना करें विजय दिलाने वाला रथ तो कोई दूसरा ही होता है। वह रथ कैसा होता है वह मैं आपको बताता हूँ।

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।

शौर्य और धैर्य उस रथ के दो चक्र हैं, सत्य और शील की दृढ़ ध्वजा उस रथ पर फहरा रही है।

बल बिबेक दम परहित घोरे। क्षमा कृपा समता रजु जोरे।।

बल, विवेक, दमन और दूसरों का हित करना ये इस रथ के घोड़े हैं जो क्षमा, कृपा और समता रूपी रस्सी से जुड़े हुए हैं।

ईश भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म सन्तोष कृपाना।। 

ईश्वर का भजन इस रथ का अच्छा सारथी है, विरति= वैराग्य रूपी चाबुक उसके हाथ में है और सन्तोष रूपी कृपाण भी उसके पास है।

दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचण्डा। बर विज्ञान कठिन कोदण्डा।। 

विविध प्रकार का दान उसका फरसा है, प्रचण्ड बुद्धि ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। श्रेष्ठ ज्ञान-विज्ञान ही उसका कठोर धनुष है।

अमल-अचल मन त्रोण समाना। शम जम नियम सिलीमुख नाना।। 

चंचलता से रहित सदा स्थिर रहने वाला मन इस योद्धा का तरकश है। शम, 5 यम, और 5 नियम उसके पैने-पैन बाण हैं।

कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।

विप्रजनों और गुरुजनों की पूजा ही अभेद कवच है जिसे कोई भेद नहीं सकता। ये सब साधन इतने सशक्त हैं कि इनके समान विजय का कोई और साधन हो ही नहीं सकता।

सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।

अतः हे मित्र विभीसण। जिसके पास ऐसा धर्ममय रथ है उसको कभी कोई शत्रु जीत नहीं सकता।

महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।

जाके अस रथ होय दृढ़ सुनहुँ सखा मति धीर ।।

हे मित्र! वास्तव में अजेय रावण नहीं अपितु यह संसार है। जो योगी व्यक्ति इसे जीत लेता है वही सच्चा वीर है और इसे वही जीत सकता है जिसके पास यह धर्ममय रथ होता है।  अतः आप चिन्ता तनिक भी ना करें हमारे पास जो धर्ममय रथ है उसके कारण निश्चित रूप से विजय हमारी ही होगी।

3 comments:

Shibu Chakraborty said...

Om swami ji pronam 🙏🙏

Nitin Kumar said...

प्रणाम पूज्य स्वामी जी

Prashant said...

om swami ji

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