Monday, February 10, 2025

अग्नि सूक्तम्

 

ऋग्वेद मंडल 1 सूक्त 1 मंत्र 1 से 9, अग्नि सूक्त

ऋषि - मधुच्छन्दा विश्वामित्र ।। देवता - अग्नि ।। छंद – गायत्री

अथ अग्नि सूक्तम्

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । 

होतारं रत्नधातमम् ॥१॥

अग्निः पूर्वेभिऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत । 

स देवाँ एह वक्षति ॥२॥

अग्निना रयिमश्नवत्पोषमेव दिवेदिवे । 

यशसं वीरवत्तमम् ॥३॥

अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । 

स इद्देवेषु गच्छति ॥४॥

अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । 

देवो देवेभिरा गमत् ॥५॥

यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । 

तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः ॥६॥

उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । 

नमो भरन्त एमसि ॥७॥

राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । 

वर्धमानं स्वे दमे ॥८॥

स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । 

सचस्वा नः स्वस्तये ॥९॥

इति अग्नि सूक्तम्

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