उत्थित पार्श्वकोणासन क्या है? उत्थित पार्श्वकोणासन करने का सरल विधि, विशेष लाभ, सावधानी और निष्कर्ष
उत्थित
पार्श्वकोणासन क्या है?
उत्थित
पार्श्वकोणासन (Utthita
Parshvakonasana) संस्कृत में
- "उत्थित" = फैलाया हुआ / विस्तारित
- "पार्श्व" = बगल / साइड
- "कोण" = कोण / एंगल
- आसन = स्थिति या मुद्रा
यह एक खड़े
होकर किया जाने वाला संतुलन और
स्ट्रेचिंग योगासन है, जो पूरे शरीर को सक्रिय करता है, विशेषकर कमर, जांघों, पेट और कंधों को।
उत्थित पार्श्वकोणासन
1. सरल विधि (Step-by-Step)
- ताड़ासन में
खड़े हों।
- पैरों
को लगभग 3–4 फीट तक
फैलाएं।
- दायां
पैर 90° बाहर
घुमाएं, बायां
पैर थोड़ा अंदर।
- सांस
छोड़ते हुए दायां घुटना मोड़ें, जांघ ज़मीन के समानांतर रखें।
- दायां
हाथ नीचे लाकर दाएं पैर के बाहर (या टखने के पास) रखें, हथेली ज़मीन पर टिकाएं।
- बायां
हाथ सीधा ऊपर उठाकर सिर के ऊपर ले जाएं, कान के पास, हथेली नीचे की ओर।
- दृष्टि
बाएं हाथ की उंगलियों की दिशा में रखें।
- 20–30 सेकंड तक गहरी सांस लें, फिर सांस लेते हुए धीरे-धीरे
वापस आएं।
- यही
प्रक्रिया बाईं ओर से दोहराएं।
2. विशेष लाभ
- पेट और
कमर की
मांसपेशियों को मजबूत और लचीला बनाता है।
- जांघ, घुटने
और टखने की
शक्ति बढ़ाता है।
- छाती
को फैलाकर फेफड़ों
की क्षमता में सुधार करता है।
- पाचन
शक्ति को
उत्तेजित करता है।
- कमर व
कूल्हों की अकड़न को दूर करता है।
- शरीर
का संतुलन
और स्थिरता बढ़ाता है।
3. सावधानियां
- उच्च
रक्तचाप, चक्कर
आने की समस्या या माइग्रेन में सावधानी।
- घुटने
या कूल्हे में गंभीर चोट होने पर न करें।
- गर्भवती
महिलाएं इसे प्रशिक्षक की देखरेख में ही करें।
- रीढ़
की गंभीर समस्या में डॉक्टर या योगाचार्य से सलाह लें।
4. निष्कर्ष
उत्थित
पार्श्वकोणासन एक शक्तिशाली स्टैंडिंग योग मुद्रा है, जो शरीर में ताकत, लचीलापन और संतुलन तीनों को एक साथ विकसित करती है।
सही विधि, गहरी सांस और नियमित अभ्यास से यह कमर दर्द, पाचन विकार और मांसपेशियों की
जकड़न में लाभकारी है। परंतु इसे अपनी
क्षमता और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार ही करना चाहिए।
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