पुर्वोत्तानासन क्या है? पुर्वोत्तानासन करने का सरल विधि, विशेष लाभ, सावधानी और निष्कर्ष
पुर्वोत्तानासन
(Purvottanasana)
संस्कृत में
— "पूर्व" का अर्थ है "पूरब" या
"आगे का भाग" और "उत्तान" का अर्थ है "ऊपर की ओर
खिंचाव"। इस आसन में शरीर का सामने का भाग (छाती, पेट, जांघें) पूरी तरह खिंचता है, इसलिए इसे उपरितान पूर्वासन भी कहा जाता है। यह एक बैक-बेंडिंग
व स्ट्रेचिंग आसन है, जो शरीर को आगे की ओर झुकने वाले
आसनों के संतुलन में मदद करता है।
पुर्वोत्तानासन |
पुर्वोत्तानासन करने की सरल विधि
- प्रारंभिक
स्थिति – दंडासन
(सीधे पैरों के साथ बैठना) में बैठें।
- हाथों
की स्थिति – दोनों
हथेलियाँ कूल्हों के पीछे ज़मीन पर रखें, उंगलियाँ पैरों की ओर रहें।
- सांस अंदर
लें और
कंधों को पीछे खींचते हुए छाती को फैलाएँ।
- शरीर
को ऊपर उठाएँ – पहले
कूल्हे उठाएँ, फिर
सिर को धीरे से पीछे ले जाएँ।
- पूरे
शरीर को सीधा करें – एड़ी से लेकर सिर तक एक सीधी रेखा बनाएं।
- नज़र
पीछे या ऊपर रखें और 15–30 सेकंड तक सामान्य श्वास लें।
- वापस
आने के लिए – धीरे
से कूल्हों को नीचे लाएँ और दंडासन में लौट आएँ।
विशेष लाभ
- मांसपेशियों
का सुदृढ़ीकरण – बाजू, कंधे, पीठ, पैर और पेट की मांसपेशियाँ
मजबूत होती हैं।
- रीढ़
की लचक – रीढ़
को लचीला और स्वस्थ बनाता है।
- हृदय व
श्वसन तंत्र – छाती
के फैलने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और रक्तसंचार सुधरता है।
- पाचन
सुधार – पेट और
पेल्विक क्षेत्र में खिंचाव से पाचन अंग सक्रिय होते हैं।
- ऊर्जा
में वृद्धि – थकान, सुस्ती और मानसिक जड़ता कम
करता है।
सावधानियाँ
- गर्दन
या पीठ की गंभीर समस्या हो तो यह आसन चिकित्सक की सलाह से ही करें।
- उच्च
रक्तचाप, हृदय
रोग, या
कलाई में चोट होने पर सावधानी रखें।
- शुरुआती
अवस्था में शरीर को ज़्यादा जोर से न खींचें, धीरे-धीरे समय और ऊँचाई बढ़ाएँ।
- गर्भवती
महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
निष्कर्ष
पुर्वोत्तानासन
एक संतुलनकारी आसन है जो शरीर के आगे के हिस्से को खोलता है और पीछे के हिस्से को
मजबूत करता है। यह शारीरिक ताकत, लचीलापन और ऊर्जा बढ़ाने के साथ-साथ आसन अभ्यास को
संतुलित बनाता है। सही विधि, क्रमिक
अभ्यास और सावधानियों का पालन करने पर यह आसन अत्यंत लाभकारी है।