Friday, September 27, 2024

वृक्षासन क्या हैं? वृक्षासन के अभ्यास का सही तरीका और विशेष लाभ व सावधानी

वृक्षासन के अभ्यास



वृक्षासन क्या हैं?  
वृक्षासन या ट्री पोज़ एक प्यारा ध्यान है जो हमारे शरीर, मन और सांस को एकीकृत करता है। यह दया, उदारता, लचीलापन, सहनशीलता, शक्ति, धीरज, संतुलन और अनुग्रह के गुणों को दर्शाता है जो किसी व्यक्ति को उसके जीवन में समग्र विकास प्राप्त करने में मदद करता है।

वृक्षासन के अभ्यास का सही तरीका :-

1. योग मैट पर सावधान की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाएं। 

2. दोनों हाथ को जांघों के पास ले आएं। 

3. धीरे-धीरे दाएं घुटने को मोड़ते हुए उसे बायीं जांघ पर रखें। 

4. बाएं पैर को इस दौरान मजबूती से जमीन पर जमाए रखें। 

5. बाएं पैर को एकदम सीधा रखें और सांसों की गति को सामान्य करें।

6. धीरे से सांस खींचते हुए दोनों हाथों को ऊपर की तरफ उठाएं।

7. दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर 'नमस्कार' की मुद्रा बनाएं। 

8. दूर रखी किसी वस्तु पर नजर गड़ाए रखें और संतुलन बनाए रखें। 

9. रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। शरीर मजबूत के साथ ही लचीला भी रहेगा। 

10. गहरी सांसें भीतर की ओर खींचते रहें।

11. सांसें छोड़ते हुए शरीर को ढीला छोड़ दें। 

12. धीरे-धीरे हाथों को नीचे की तरफ लेकर आएं। 

13. अब दायीं टांग को भी जमीन पर लगाएं। 

14. वैसे ही खड़े हो जाएं जैसे आप आसन से पहले खड़े थे। 

15. इसी प्रक्रिया को अब बाएं पैर के साथ भी दोहराएं। 

वृक्षासन या ट्री पोज़ करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं: -

शरीर और मन का संतुलन
वृक्षासन करने से शरीर का संतुलन और स्थिरता बेहतर होती है. यह शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से संतुलन बनाने में मदद करता है

मानसिक स्वास्थ्य
वृक्षासन करने से मानसिक शांति मिलती है और चिंता-तनाव कम होता है. यह दिमाग को तेज करता है और एकाग्रता बढ़ाता है

शरीर की मज़बूती

वृक्षासन से पैरों, टखनों, पिंडलियों, घुटनों, और जांघों की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं. यह बांह की मांसपेशियों को भी मज़बूत करता है

रीढ़ और पेट की सेहत
वृक्षासन से रीढ़ और पेट स्वस्थ रहते हैं

साइटिका में राहत
साइटिका के दर्द को कम करने में वृक्षासन का अभ्यास फ़ायदेमंद होता है।

लचीलापन
वृक्षासन से शरीर की लचक बढ़ती है

आत्मविश्वास
वृक्षासन से आत्मविश्वास बढ़ता है

पीठ दर्द में राहत
वृक्षासन से पीठ दर्द का खतरा कम होता है

शरीर को इसके अलावा कई लाभ

ये न्यूरो-मस्क्युलर के बीच संबंध को मजबूत और स्वस्थ बनाता है। ये पैरों के लिगामेंट और टेंडोंस को मजबूत बनाता है। घुटने मजबूत होते हैं और हिप्स के जोड़ ढीले होते हैं। आंखें, भीतरी कान और कंधे भी मजबूत होते हैं। ये फ्लैट फीट की समस्या से भी राहत दिलवाता है। ये आपको स्थिर, लचीला और धैर्यवान बनाता है। ये आसन छाती की चौड़ाई बढ़ाने में भी मदद करता है।


वृक्षासन का अभ्यास करने से बचें। ( सावधानी ) हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को वृक्षासन करते हुए हाथों को ऊपर की तरफ नहीं उठाना चाहिए। वे हाथों को सीने पर या 'अंजलि मुद्रा' में भी रख सकते हैं। इंसोम्निया के मरीज वृक्षासन का अभ्यास न करें। माइग्रेन की समस्या होने पर भी वृक्षासन नहीं करना चाहिए। शुरुआत में वृक्षासन को योग ट्रेनर की देखरेख में ही करें। संतुलन बनने पर आप खुद भी ये आसन कर सकते हैं। वृक्षासन का अभ्यास शुरू करने से पहले हमेशा डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

Sunday, September 22, 2024

स्वस्थ जीवन जीने के लिए छोटे -छोटे उपाय के सूत्र


स्वस्थ जीवन जीने के लिए छोटे -छोटे उपाय के सूत्र 

(स्वास्थ्य-रक्षक आरोग्य-सूत्र)  


प्रातः उठकर 2-3 गिलास गुनगुना पानी पिएं। 

प्रतिदिन शौच-स्नान के पश्चात् किसी नजदीकी योग कक्षा में आसन, प्राणायाम, ध्यानादि नियमित रूप से करें।

भोजन से पूर्व ईश्वर का स्मरण करें तथा भोजन को ईश्वर का प्रसाद मानकर ग्रहण करें।

समय पर सात्त्विक व संतुलित भोजन करना आरोग्य का सबसे बड़ा मंत्र है।

भोजन से तुरन्त पहले एवं तुरन्त बाद में जल पीने से जठराग्नि मंद होती है।

दिन में भोजन के बाद सोने से कफ की वृद्धि होती है तथा मोटापा बढ़ता है।

बिस्तर पर लेट कर पढ़ना आँखों के लिए हानिकारक होता है।

शौच करते समय दाँतों को भींचकर रखने से वृद्धावस्था में भी दाँत नहीं हिलते।

प्रातः मुँह में पानी भरकर ठण्डे जल से आँखों पर छींटे मारें। 

अँगूठे से तालु की सफाई करने से आँख, नाक, कान एवं गले के रोग नहीं होते।

भोजन के उपरान्त कम से कम 10 मिनट तक वज्रासन में बैठें। 

रात्रि भोजन के बाद यदि सम्भव हो तो थोड़ा भ्रमण करें।

सदैव रीढ़ (कमर) को सीधी रखकर बैठें। जमीन पर बैठकर बगैर सहारे के उठें।

खाने के दौरान पानी न पिएं। खाने से आधा घण्टे पहले तथा आधा घण्टे बाद पानी का सेवन करें।  

पानी सदैव घूंट-घूंट करके पिएं।

मुंह ढककर न सोयें। रात को कमरे में सोते समय वायुसंचार को पूर्णतया अवरुद्ध न करें।

बायों करवट सोने से दायां स्वर चलता है, जो भोजन पचाने में सहायक है।

ब्रह्मचर्य का पालन करने से आयु तथा शारीरिक शक्ति की वृद्धि होती है।

उत्तर तथा पश्चिम दिशा की ओर सिर करके सोने वालों की आयु क्षीण होती है। 

पूर्व तथा दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोने वालों की आयु दीर्घ होती है।

रात को जल्दी सोएं और प्रातःकाल जल्दी उठें, इस प्रकार प्रतिदिन सूर्योदय से डेढ़ घण्टा पूर्व उठें।

ताँबे के पात्र में रखे जल का सेवन यकृत् व प्लीहा के लिए लाभप्रद होता है।

प्रातः नंगे पांव हरी घास पर टहलें, इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।

सब रोगों की एक मात्र निर्विवाद, प्रामाणिक, वैज्ञानिक व प्रभावशाली अनुभूत सर्वश्रेष्ठ औषधि प्राण (प्राणायाम) है।

प्राणायाम करने से सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं तथा शरीर स्वस्थ व मन शान्त रहता है और आत्मबल बढ़ता है।

शरीर में दृढ़ता व स्फूर्ति लाने के लिए शारीरिक व्यायाम सर्वश्रेष्ठ उपाय है।

स्नान से पूर्व दोनों पैरों के अँगूठों में सरसों का शुद्ध तैल मलने से वृद्धावस्था तक नेत्रों की ज्योति कमजोर नहीं होती।

जीवन की स्थिरता के लिए प्राकृतिक, सात्त्विक व सहज प्राप्त अन्न (भोजन) सर्वश्रेष्ठ है।

ताजी हवा व स्वस्थ वातावरण थकान को दूर कर शरीर में ताजगी व स्फूर्ति उत्पन्न करता है।

मल, मूत्र, छींक आदि के वेगों को कभी नहीं रोकना चाहिए। वेग रोकने से रोग उत्पन्न होते हैं।

मूत्र व पुरीष के वेग को रोकने से आध्मान तथा उदावर्त आदि विकारों की उत्पत्ति होती है।

ज्यादा बोलने से शारीरिक शक्ति का हास तथा वात की वृद्धि होती है।

मानसिक शान्ति व प्रसन्नता व्याधिरहित जीवन के लिए सुरक्षित है।

मानसिक अप्रसन्नता जीवन के उत्साह एवं स्फूर्ति को नष्ट करती है।

तनाव व चिन्ता बीमारियों को उत्पन्न करते हैं तथा हृदय को कमजोर बनाते हैं।

भय व डर वात को प्रकुपित करता है तथा शारीरिक ऊर्जा को क्षति पहुँचाता है।

क्रोध व ईर्ष्या पित्त को प्रकुपित करता है तथा शरीर में विषाक्त पदार्थों को उत्पन्न करता है।

लालच, अत्यधिक चिन्ता एवं अत्यधिक लगाव कफ की वृद्धि करता है।

शरीर में समता व प्रसन्नता लाने के लिए समुचित रूप में जल का सेवन करना उत्तम है।

पाचन शक्ति के अनुसार भोजन करने से जठराग्नि की वृद्धि होती है।

आवश्यकता से अधिक भोजन करने से अजीर्ण उत्पन्न होता है तथा स्वास्थ्य की हानि होती है।

समय पर भोजन करने से स्वास्थ्य की रक्षा तथा बल की वृद्धि होती है।

अनियमित भोजन करने से पाचन शक्ति में अनियमितता उत्पन्न होती है तथा स्वास्थ्य की हानि होती है।

व्याधिविनाश के लिए लंघन (उपवास) सर्वश्रेष्ठ है- 'लंघनं परमौषधम्।'

उपवास (सप्ताह में एक बार) करने से शरीर के आमदोष आदि विषैले तत्त्वों का शमन होता है।

लम्बे समय तक उपवास रखने से स्वास्थ्य की क्षति होती है।

अधिक मात्रा में ठण्डे पेय पदार्थ पीने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है।

खाने के पश्चात् लघुशंका अवश्य करें।

सांस हमेशा नाक से ही लें व छोड़ें। ईश्वर ने मुख खाने के लिए दिया है, मुख से सांस नहीं लेना चाहिए।

रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले खाएं, खाने के बाद थोड़ी चहल कदमी करें, खाने के तुरन्त बाद न लेटें। 

बिना तकिए के सोने से हृदय और मस्तिष्क मजबूत होता है।

फल तथा सब्जियों को अच्छी तरह धोकर प्रयोग करें। छिलके वाली दालों का ही सेवन करें।

सोने के लिए अधिक नर्म बिस्तर का प्रयोग न करें, डनलप के गद्दे का प्रयोग हानिकारक है।

नाश्ते में हल्का तथा रेशायुक्त खाद्य, अंकुरित अन्न, फल व दलिए का इस्तेमाल करें।

दिन में कम से कम 8-10 गिलास (ढाई से तीन लीटर) पानी जरूर पिएं। ग्रीष्म ऋतु में तो यथेष्ट जल पिएं।

भोजन हमेशा धरती पर बैठकर ही करें, खूब चबा-चबाकर खाएं।

भोजन करने समय मौन रहें, शोर न करें, पूरा ध्यान खाने पर ही रखें। भोजन करते समय टेलीविजन न देखें। 

भोजन के तुरन्त बाद आईस्क्रीम न खाएं।

कम खायें, जीवन जीने के लिए खायें, न कि खाने के लिए जिएं।

आमाशय का आधा भाग भोजन, चौथाई भाग पानी व चौथाई वायु के लिए। देह को देवालय बनाएं, कन्निस्तान नहीं। 

पानी हमेशा बैठकर ही पिएं, खड़े होकर पानी पीने से घुटनों में दर्द होने लगता है।

अगर मनुष्य अपनी दिनचर्या को नियमित रखे और इस छोटे-छोटे तथ्यों का ध्यान रखे और उनका पालन करें तो सुखमय मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति कर दीर्घायु को प्राप्त कर सकता है।

उत्थित लोलासन क्या है? उत्थित लोलासन करने का सरल विधि, विशेष लाभ, सावधानी और निष्कर्ष

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