विपरीत वीरभद्रासन
क्या है? विपरीत विरभद्रासन करने का सरल विधि, विशेष लाभ, सावधानी और निष्कर्ष
विपरीत
वीरभद्रासन (Reverse
Warrior Pose)
यह एक
शक्तिशाली खड़े होकर किया जाने वाला योगासन है, जिसे अंग्रेज़ी में Reverse Warrior Pose या Viparita Virabhadrasana कहा जाता है। यह वीरभद्रासन II (Warrior II) का ही एक सौम्य परंतु गहन वेरिएशन
है, जिसमें शरीर को पीछे की ओर हल्का
सा मोड़ते हुए पार्श्व खिंचाव (lateral stretch) दिया जाता है।
विपरीत वीरभद्रासन करने की सरल विधि (Step-by-Step)
1. प्रारंभ: ताड़ासन (Mountain Pose) में खड़े हों।
2. वीरभद्रासन II में आएँ:
o दाहिने पैर को लगभग 3–4 फुट पीछे ले जाएँ।
o दाहिना पैर सीधा रखें, बायाँ पैर लगभग 90° पर घुमाएँ।
o बायाँ घुटना 90° तक मोड़ें, दोनों हाथों को कंधों के समानांतर
फैलाएँ।
3. विपरीत दिशा में झुकाव:
o दाहिना हाथ धीरे-धीरे जांघ के
पिछले हिस्से पर रखें।
o बायाँ हाथ ऊपर की ओर सिर के पास ले
जाएँ, हथेली अंदर की ओर।
o साँस लेते हुए छाती और पसलियों को
ऊपर-पीछे की ओर हल्का मोड़ें।
4. स्थिरता: 20–30 सेकंड (या 5–8 श्वास) तक रुकें।
5. वापसी: साँस छोड़ते हुए हाथ नीचे लाएँ, वीरभद्रासन II में आएँ।
6. दूसरी ओर: समान प्रक्रिया दूसरी दिशा में
दोहराएँ।
विशेष लाभ (Key Benefits)
- रीढ़
और पार्श्व शरीर की लचक: साइड बॉडी, कंधे व रीढ़ में गहरा स्ट्रेच।
- पैरों
की मजबूती: जांघ, पिंडली व टखने को सशक्त करता
है।
- फेफड़ों
की क्षमता: पसलियों
का फैलाव बढ़ने से श्वसन क्षमता में सुधार।
- ऊर्जा
संतुलन: शरीर
में रक्तसंचार एवं ऊर्जा प्रवाह को सक्रिय करता है।
- तनाव
मुक्ति: हल्के
बैक-बेंड से मानसिक तनाव व थकान कम होती है।
सावधानियाँ (Precautions)
- घुटने
या टखने की समस्या: घुटने की चोट या गठिया हो तो घुटने को 90° पर न मोड़ें; सहारा लें।
- कमर या
रीढ़ की तकलीफ़: हर्नियेटेड
डिस्क, गंभीर
स्लिप-डिस्क या तीव्र कमर दर्द में न करें।
- गर्भावस्था: शुरुआती तिमाही के बाद अभ्यास
विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
- संतुलन
समस्या: चक्कर
या ब्लड प्रेशर अस्थिर हो तो अभ्यास हल्का रखें।
- अभ्यास
के दौरान साँस
रोकें नहीं, और
दर्द होने पर तुरंत रुकें।
निष्कर्ष
विपरीत
वीरभद्रासन एक उर्जावान, सुंदर और शरीर को दोनों ओर से
संतुलित करने वाला आसन है। यह शक्ति, लचीलापन और गहरी साँस लेने की क्षमता बढ़ाने में
सहायक है। नियमित अभ्यास से आप न केवल शारीरिक सुदृढ़ता पाते हैं, बल्कि मन को भी स्थिरता और शांति
का अनुभव होता है—बस ध्यान रखें कि इसे अपनी क्षमता और सावधानियों के अनुसार ही
करें।