गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च ।
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च ॥
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता माहात्म्यं)
पवित्र ग्रन्थ गीता के स्वाध्याय व प्राणायाम के नियमित अभ्यास से चित्त में संचित पूर्वजन्म की अशुभ वृत्तियों (पापों) का नाश हो जाता है।
योगासनों से हम स्थूल शरीर की विकृतियों को दूर करते हैं। सूक्ष्म शरीर पर योगासनों की अपेक्षा प्राणायाम का विशेष प्रभाव होता है, प्राणायाम से सूक्ष्म शरीर ही नहीं, स्थूल शरीर पर भी विशेष प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। हमारे शरीर में फेफड़ों, हृदय एवं मस्तिष्क का एक विशेष महत्त्व है और इन तीनों का एक दूसरे के स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध भी है।
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